श्री रघुवीर भक्त हितकारी, सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई, ता सम भक्त और नहिं होई॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं, ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं।
जय जय जय रघुनाथ कृपाला, सदा करो सन्तन प्रतिपाला॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना, जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना।
तव भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला, रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं, दीनन के हो सदा सहाई।
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं, सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी, तुम भक्तन की लज्जा राखी।
गुण गावत शारद मन माहीं, सुरपति ताको पार न पाहीं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई, ता सम धन्य और नहिं होई।
राम नाम है अपरम्पारा, चारिउ वेदन जाहि पुकारा॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हौ, तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हौ।
शेष रटत नित नाम तुम्हारा, महि को भार शीश पर धारा॥
फूल समान रहत सो भारा, पाव न कोउ तुम्हारो पारा।
भरत नाम तुम्हरो उर धारो, तासों कबहु न रण में हारो॥
नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा, सुमिरत होत शत्रु कर नाशा।
लषन तुम्हारे आज्ञाकारी, सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई, युद्ध जुरे यमहूं किन होई।
महालक्ष्मी धर अवतारा, सब विधि करत पाप को छारा॥
सीता नाम पुनीता गायो, भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो।
घट सों प्रकट भई सो आई, जाको देखत चन्द्र लजाई॥
सो तुमनरे नित पांव पलोटत, नवों निद्धि चरणन में लोटत।
सिद्धि अठारह मंगलकारी, सो तुम पर जावै बलिहारी॥
औरहुं जो अनेक प्रभुताई, सो सीतापति तुमहि बनाई।
इच्छा ते कोटिन संसारा, रचत न लागत पल की वारा।
जो तुम्हरे चरणन चित लावै, ताकी मुक्ति अवसि हो जावै।
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा, निर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य व्रत स्वामी, सत्य सनातन अन्तर्यामी।
सत्य भजन तुम्हारो जो गावै, सो निश्चय चारों फल पावै॥
सत्य शपथ गौरिपति कीन्हीं, तुमने भक्तिहिं सब सिद्धि दीन्हीं।
सुनहु राम तुम तात हमारे, तुहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे, तुम गुरुदेव प्राण के प्यारे।
जो कुछ हो सो तुम ही राजा, जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे, जय जय जय दशरथ दुलारे।
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा, नमो नमो जय जगपति भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा, नाम तुम्हार हरत संतापा।
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया, बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन, तुम ही हो हमारे तन मन धन।
याको पाठ करे जो कोई, ज्ञान प्रकट ताके उर होई।
आवागमन मिटै तिहि केरा, सत्य वचन माने शिव मेरा।
और आस मन में जो होई, मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहूं काल ध्यान जो ल्यावैं, तुलसी दर अरु फूल चढ़ावैं।
साग पत्र सो भोग लगावैं, सो नर सकल सिद्धता पावैं॥
अन्त समय रघुवर पुर जाई, जहां जन्म हरि भक्त कहाई।
श्री हरिदास कहै अरु गावै, सो बैकुण्ठ धाम को जावै॥
दोहा
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
राम चालीसा जो पढ े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्ध हो जाय॥
चित्र http://www.sulekha.com/mstore/innervoice/albums/default/Lord_Rama3.jpg से साभार