Wednesday, November 29, 2017

नर्मदाष्टकं || Narmadashtakam

सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंग-रंजितं,
द्विषत्सु पापजात-जातकारि-वारिसंयुतम्।
कृतान्‍त-दूतकालभूत-भीतिहारि वर्मदे,
त्वदीयपादपंकजं नमामि देवि नर्मदे।।१।। 

त्वदम्‍बु-लीनदीन-मीन-दिव्य संप्रदायकं,
कलौ मलौध-भारहारि सर्वतीर्थनायकम्।
सुमत्स्य-कच्छ-नक्र-चक्र-चक्रवाक्-शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।२।।

महागम्‍भीर-नीरपूर-पापधूत-भूतलं,
ध्वनत-समस्त-पातकारि-दारितापदाचलम्।
जगल्लये महामये मृकंडुसून-हर्म्यदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।३।।

गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा,
मृकंडुसूनु-शौनकासुरारिसेवि सर्वदा।
पुनर्भवाब्धि-जन्मजं भवाब्धि-दु:खवर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।४।।

अलक्ष-लक्ष-किन्नरामरासुरादिपूजितं,
सुलक्ष नीरतीर-धीरपक्षि-लक्षकूजितं।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।५।।

सनत्कुमार-नाचिकेत कश्यपात्रि-षट्पदै,
धृतं स्वकीयमानसेषु नारदादिषट्पदै:।
रवींदु-रन्तिदेव-देवराज-कर्म शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।६।।

अलक्षलक्ष-लक्षपाप-लक्ष-सार-सायुधं,
ततस्तु जीव-जन्‍तु-तन्‍तु-भुक्ति मुक्तिदायकम्।
विरंचि-विष्णु-शंकर-स्वकीयधाम वर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।७।।

अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेश केशजातटे,
किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे।
दुरंत पाप-ताप-हारि-सर्वजंतु-शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।८।।

इदं तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा,
पठन्ति ते निरंतरं न यांतिदुर्गतिं कदा।
सुलभ्‍य देहदुर्लभं महेश धाम गौरवं,
पुनर्भवा नरा: न वै विलोकयंति रौरवम्।।
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।९।।

(विश्‍ववन्दित भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा रचित नर्मदाष्टकं)

Monday, November 13, 2017

उत्पन्ना एकदशी

 उत्पन्ना एकदशी क्यूँ  है अति महत्त्वपूर्ण 

उत्पन्ना एकदशी को भगवान विष्णु और देवी एकदशी के सम्मान में, कार्तिक के हिंदू माह के कृष्ण पक्ष की एकदशी तिथी (ग्यारहवें दिन) पर, मनाया जाएगा| उत्तर भारत में, हालांकि, इस एकादशी को मार्गशिर्ष महीने के दौरान मनाया जाता हैं|
उत्पन्ना एकादशी सब एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती हैं क्योंकि यह एकादशी उपवास की उत्पत्ति के साथ जुड़ी हुई हैं| सभी एकादशी उपवास, देवी एकादशी को समर्पित किए जाते हैं| देवी एकादशी भगवान विष्णु की शक्तियों में से एक हैं| इस शक्ति का जन्म तब हुआ था जब भगवान विष्णु की हत्या करने के लिए दानव मूर ने उनपर हमला किया| इसलिए देवी एकादशी भगवान विष्णु की रक्षा करने वाली शक्तियों में से एक हैं|

एक बार एक मुरा (मुरासुर) नाम का राक्षस रहता था, जिसने पृथ्वी और देवलोक पर हलचल मचा रखी थी और प्रत्येक जान को परेशान कर रखा था| दानव के इस अत्याचार को सहन करने में असमर्थ देवों ने भगवान शिव से मदद लेने का सोचा| भगवान शिव ने सभी देवों को सलाह दी की वह सब उनके बदले भगवान विष्णु से प्रार्थना करें|
भगवान विष्णु ने सभी के अनुरोध का ध्यान रखा और 10,000 साल तक दानव की सेना से युद्ध लड़ा| ऐसी मान्यता हैं की भगवान विष्णु, मुरासुर के अलावा उसकी सेना के हर राक्षस को मार चुके थे| जब और समय बाद तक वह मुरा को नही हरा पायें तभी भगवान विष्णु आराम करने के लिए हेमवती गुफाओं में गए। यह देख राक्षस ने मौके का फ़ायदा उठाने का सोचा और भगवान विष्णु को निंद्रावस्था में ही मारने का सोचा|
परंतु जैसे ही मुरा ने प्रभु को मारने के लिए अपने अस्त्र उठायें; तभी एक युवा लड़की भगवान विष्णु के शरीर से प्रकट हुई और उसने राक्षस को मार डाला। जब प्रभु अपनी नींद से जाग गए, उन्हें यह एहसास हुआ कि युवती ने राक्षस का वध कर दिया हैं| फिर भगवान विष्णु ने लड़की को वरदान माँगने के लिए कहा। युवती ने भगवान विष्णु को अपने भक्तों को आशीर्वाद देने में सक्षम होने के लिए शक्ति माँगी, जिन्होंने धर्म, धान्य और मोक्ष के साथ प्रभु के सम्मान में उपवास का पालन किया।
उसकी इच्छा को प्रभु ने पूर्ण किया और अब उस दिन को एकादशी के रूप में मनाया जाना जाता हैं क्योंकि वह एकादशी तिथि पर पैदा हुई थी। ऐसा माना जाता हैं कि जो कोई एकादशी तिथि पर उपवास करता हैं, वह मोक्ष से आशीषित होता हैं|


माना जाता हैं कि यदि एकदशी को अत्यंत समर्पण के साथ पूजा जाए, तो मनुष्य अपने हर पाप से मुक्त हो जाता हैं, और मृत्यु के बाद वह भगवान विष्णु के निवास में ले जाया जाता हैं| यह भी माना जाता हैं कि इस दिन उपवास करना यानी त्रिदेव - भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, और भगवान शिव के सम्मान में उपवासों के बराबर हैं|