Saturday, August 21, 2010

श्री शिव चालीसा (Shri Shiv Chalisa)

Shiv Pariwar (शिव परिवार)

दोहा

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

चौपाई

जय गिरिजापति दीनदयाला,
सदा करत सन्तन प्रतिपाला।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके,
कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये,
मुण्डमाल तन छार लगाये।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे,
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु कि हवे दुलारी,
वाम अंग सोहत छवि न्यारी।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी,
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहैं तहं कैसे,
सागर मध्य कमल हैं जैसे।
कार्तिक श्याम और गणराऊ,
या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा,
तबहीं दुःख प्रभु आप निवारा।
किया उपद्रव तारक भारी,
देवन सब मिलि तुमहि जुहारी॥

तुरत षड़ानन आप पठायउ,
लव निमेष महं मारि गिरायउ।
आप जलंधर असुर संहारा,
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई,
सबहिं कृपा कर लीन बचाई।
दानिन महं तुम सम कोई नाहीं,
सेवक अस्तुति करत सदा ही॥

वेद नाम महिमा तव गाई,
अकथ अनादि भेद नहिं पाई।
प्रगटी उदधि मंथन में ज्वाला,
जरे सुरासुर भये विहाला॥

कीन्हीं दया तहं करी सहाई,
नीलकण्ठ तब नाम कहाई।


पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा,
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

सहस कमल में हो रहे धारी,
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखे जोई,
कमल नयन पूजन चहं सोई॥

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर,
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।
जै जै जै अनन्त अविनासी,
करत कृपा सबही घटवासी॥

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै,
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो,
यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो,
संकट से मोहि आन उबारो,
मातु पिता भ्राता सब कोई,
संकट में पूछत नहीं कोई॥

स्वामी एक है आस तुम्हारी,
आय हरहुं मम संकट भारी।
धन निर्धन को देत सदा ही,
जो कोई जाचें वो फल पाहीं॥

अस्तुति केहि विधि करो तिहारी,
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।
शंकर हो संकट के नाशन,
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

योगि यति मुनि ध्यान लगावै,
नारद शारद शीश नवावै।
नमो नमो जय नमो शिवायै,
सुर ब्रह्‌मादिक पार न पाए॥

जो यह पाठ करे मन लाई,
तापर होत हैं शम्भु सहाई।
दुनिया में जो हो अधिकारी,
पाठ करे सो पावन हारी॥

पुत्रहीन इच्छा कर कोई,
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।
पंडित त्रयोदशी को लावे,
ध्यान पूर्वक होम करावे॥

त्रयोदशी व्रत करे हमेशा,
तन नहिं ताके रहे कलेशा।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे,
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥


जन्म जन्म के पाप नसावै,
अन्त वास शिवपुर में पावै।
कहै अयोध्या आस तुम्हारी,
जानि सकल दुख हरहु हमारी॥

दोहा

नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौ चालीसा।
तु मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीशा॥
मगसर छठि हेमन्त ऋतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहिं, पूर्ण कीन कल्याण॥

चित्र fiveprime.org से साभार

Sunday, August 8, 2010

आरती श्री शिव जी की (Aarti Shri Shiv Ji Ki)


जय शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा,
ब्रह्‌मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा।

एकानन चतुरानन पंचानन राजै
हंसानन गरुणासन वृषवाहन साजै।

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहै,
तीनों रूप निरखते त्रिभुवन मन मोहे।

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी,
चन्दन मृगमद चंदा सोहै त्रिपुरारी।

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे,
सनकादिक ब्रह्‌मादिक भूतादिक संगे।

कर मध्ये च कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी,
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी।

ब्रह्‌मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका।

त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी सुख सम्पत्ति पावे॥

चित्र hindudevotionalpower.blogspot.com से साभार

Wednesday, August 4, 2010

आरती श्री रघुवर जी की (Aarti Shri Raghuvar Ji Ki)


आरती कीजै श्री रघुवर जी की,
सत चित आनन्द शिव सुन्दर की॥

दशरथ तनय कौशल्या नन्दन,
सुर मुनि रक्षक दैत्य निकन्दन॥

अनुगत भक्त भक्त उर चन्दन,
मर्यादा पुरुषोत्तम वर की॥

निर्गुण सगुण अनूप रूप निधि,
सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि॥

हरण शोक-भय दायक नव निधि,
माया रहित दिव्य नर वर की॥

जानकी पति सुर अधिपति जगपति,
अखिल लोक पालक त्रिलोक गति॥

विश्व वन्द्य अवन्ह अमित गति,
एक मात्र गति सचराचर की॥

शरणागत वत्सल व्रतधारी,
भक्त कल्प तरुवर असुरारी॥

नाम लेत जग पावनकारी,
वानर सखा दीन दुख हर की॥

चित्र vs.rediff.com से साभार