Sunday, December 17, 2017

श्री वैष्‍णो देवी माता की आरती || Shri Vaishno Devi Mata ki Aarti

हे मात मेरी, हे मात मेरी,
कैसी यह देर लगाई है दुर्गे।
हे मात मेरी, हे मात मेरी।।१।।

भवसागर में गिरा पड़ा हूँ,
काम आदि गृह में घिरा पड़ा हूँ।
मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ।
हे मात मेरी, हे मात मेरी।।२।।

न मुझ में बल है न मुझ में विद्या,
न मुझ में भक्ति न मुझमें शक्ति।
शरण तुम्हारी गिरा पड़ा हूँ।
हे मात मेरी, हे मात मेरी।।३।।

न कोई मेरा कुटुम्ब साथी,
ना ही मेरा शारीर साथी।
आप ही उबारो पकड़ के बाहीं।
हे मात मेरी, हे मात मेरी।।४।।

चरण कमल की नौका बनाकर,
मैं पार होउँगा ख़ुशी मनाकर।
यमदूतों को मार भगाकर।
हे मात मेरी, हे मात मेरी।।५।।

सदा ही तेरे गुणों को गाऊँ,
सदा ही तेरे स्वरूप को ध्याऊँ।
नित प्रति तेरे गुणों को गाऊँ।
हे मात मेरी, हे मात मेरी।।६।।

न मैं किसी का न कोई मेरा,
छाया है चारों तरफ अन्धेरा।
पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता।
हे मात मेरी, हे मात मेरी।।७।।

शरण पड़े है हम तुम्हारी,
करो यह नैया पार हमारी।
कैसी यह देर लगाई है दुर्गे।

हे मात मेरी, हे मात मेरी।।८।।

Friday, December 15, 2017

Wallpaper of Hindu God Mahadev Shiv Shankar

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श्री प्रेतराज सरकार की आरती || Shri Pretraj Sarkar Ki Aarti

श्री प्रेतराज सरकार
बालाजी मंदिर में प्रेतराज सरकार दण्डाधिकारी पद पर आसीन हैं। प्रेतराज सरकार के विग्रह पर भी चोला चढ़ाया जाता है। प्रेतराज सरकार को दुष्ट आत्माओं को दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। भक्तिभाव से उनकी आरती , चालीसा , कीर्तन , भजन आदि किए जाते हैं। बालाजी के सहायक देवता के रूप में ही प्रेतराज सरकार की आराधना की जाती है। प्रेतराज सरकार को पके चावल का भोग लगाया जाता है। 
|| आरती ||
जय प्रेतराज कृपालु मेरी, अरज अब सुन लीजिये।
मैं शरण तुम्हारी आ गया हूँ, नाथ दर्शन दीजिये।
मैं करूं विनती आपसे अब, तुम दयामय चित धरो।
चरणों का ले लिया आसरा, प्रभु वेग से मेरा दुःख हरो।
सिर पर मोर मुकुट कर में धनुष, गलबीच मोतियन माल है।
जो करे दर्शन प्रेम से सब, कटत तन के जाल हैं।
जब पहन बख्तर ले खड़ग, बांई बगल में ढाल है।
ऐसा भयंकर रूप जिनका, देख डरपत काल है।
अति प्रबल सेना विकट योद्धा, संग में विकराल हैं।
तब भुत प्रेत पिशाच बांधे, कैद करते हाल हैं।
तब रूप धरते वीर का, करते तैयारी चलन की।
संग में लड़ाके ज्वान जिनकी, थाह नहीं है बलन की।
तुम सब तरह समर्थ हो, प्रभु सकल सुख के धाम हो।
दुष्टों के मारनहार हो, भक्तों के पूरण काम हो।
मैं हूं मती का मन्द मेरी, बुद्धि को निर्मल करो।
अज्ञान का अन्धेर उर में, ज्ञान का दीपक धरो।
सब मनोरथ सिद्ध करते, जो कोई सेवा करे।
तन्दुल बूरा घृत मेवा, भेंट ले आगे धरे।
सुयश सुन कर आपका, दुखिया तो आये दूर के।
सब स्त्री अरू पुरूष आकर, पड़े हैं चरण हजूर के।
लीला है अद्भुत आपकी, महिमा तो अपरंपार है।
मैं ध्यान जिस दम धरत हूँ , रच देना मंगलाचार है।
सेवक गणेशपुरी महन्त जी, की लाज तुम्हारे हाथ है।
करना खता सब माफ, उनकी देना हरदम साथ है।
दरबार में आओ अभी, सरकार में हाजिर खड़ा।
इन्साफ मेरा अब करो, चरणों में आकर गिर पड़ा।
अर्जी बमूजिब दे चुका, अब गौर  इस पर कीजिये।
तत्काल इस पर हुक्म लिख दो, फैसला कर दीजिए।
महाराज की यह स्तुति, कोई नेम से गाया करे।
सब सिद्ध कारज होय उनके, रोग पीड़ा सब टरे।
‘‘सुखराम’’ सेवक आपका, उसको नहीं बिसराइये।
जै जै मनाऊं आपकी, बेड़े को पार लगाइये।

Thursday, December 14, 2017

श्री बृहस्‍पति देव जी की आरती || Shri Brihaspati Dev Ji Ki Aarti


जय बृहस्पति देवाॐ जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊंकदली फल मेवा॥
ॐ जय बृहस्पति देवा ।।१।।

तुम पूरण परमात्मातुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वरतुम सबके स्वामी॥
ॐ जय बृहस्पति देवा।।२।।

चरणामृत निज निर्मलसब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायककृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।३।।

तनमनधन अर्पण करजो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकरआकर द्वार खड़े॥
ॐ जय बृहस्पति देवा।।४।।

दीनदयाल दयानिधिभक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ताभव बंधन हारी॥
ॐ जय बृहस्पति देवा।।५।।

सकल मनोरथ दायकसब संशय हारी।
विषय विकार मिटाओसंतन सुखकारी॥
ॐ जय बृहस्पति देवा।।६।।

जो कोई आरती तेरीप्रेम सहित गावे।
जेष्‍ठानंद आनंदकरसो निश्चय पावे॥
ॐ जय बृहस्पति देवा।।७।।

सब बोलो विष्णु भगवान की जय!
बोलो बृहस्पतिदेव की जय!!

Wednesday, November 29, 2017

नर्मदाष्टकं || Narmadashtakam

सविंदुसिंधु-सुस्खलत्तरंगभंग-रंजितं,
द्विषत्सु पापजात-जातकारि-वारिसंयुतम्।
कृतान्‍त-दूतकालभूत-भीतिहारि वर्मदे,
त्वदीयपादपंकजं नमामि देवि नर्मदे।।१।। 

त्वदम्‍बु-लीनदीन-मीन-दिव्य संप्रदायकं,
कलौ मलौध-भारहारि सर्वतीर्थनायकम्।
सुमत्स्य-कच्छ-नक्र-चक्र-चक्रवाक्-शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।२।।

महागम्‍भीर-नीरपूर-पापधूत-भूतलं,
ध्वनत-समस्त-पातकारि-दारितापदाचलम्।
जगल्लये महामये मृकंडुसून-हर्म्यदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।३।।

गतं तदैव मे भयं त्वदंबुवीक्षितं यदा,
मृकंडुसूनु-शौनकासुरारिसेवि सर्वदा।
पुनर्भवाब्धि-जन्मजं भवाब्धि-दु:खवर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।४।।

अलक्ष-लक्ष-किन्नरामरासुरादिपूजितं,
सुलक्ष नीरतीर-धीरपक्षि-लक्षकूजितं।
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।५।।

सनत्कुमार-नाचिकेत कश्यपात्रि-षट्पदै,
धृतं स्वकीयमानसेषु नारदादिषट्पदै:।
रवींदु-रन्तिदेव-देवराज-कर्म शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।६।।

अलक्षलक्ष-लक्षपाप-लक्ष-सार-सायुधं,
ततस्तु जीव-जन्‍तु-तन्‍तु-भुक्ति मुक्तिदायकम्।
विरंचि-विष्णु-शंकर-स्वकीयधाम वर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।७।।

अहोsमृतं स्वनं श्रुतं महेश केशजातटे,
किरात-सूत वाडवेशु पण्डिते शठे-नटे।
दुरंत पाप-ताप-हारि-सर्वजंतु-शर्मदे,
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।८।।

इदं तु नर्मदाष्टकं त्रिकालमेव ये यदा,
पठन्ति ते निरंतरं न यांतिदुर्गतिं कदा।
सुलभ्‍य देहदुर्लभं महेश धाम गौरवं,
पुनर्भवा नरा: न वै विलोकयंति रौरवम्।।
त्वदीय पादपंकजं नमामि देवी नर्मदे।।९।।

(विश्‍ववन्दित भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा रचित नर्मदाष्टकं)

Monday, November 13, 2017

उत्पन्ना एकदशी

 उत्पन्ना एकदशी क्यूँ  है अति महत्त्वपूर्ण 

उत्पन्ना एकदशी को भगवान विष्णु और देवी एकदशी के सम्मान में, कार्तिक के हिंदू माह के कृष्ण पक्ष की एकदशी तिथी (ग्यारहवें दिन) पर, मनाया जाएगा| उत्तर भारत में, हालांकि, इस एकादशी को मार्गशिर्ष महीने के दौरान मनाया जाता हैं|
उत्पन्ना एकादशी सब एकादशियों में सबसे महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती हैं क्योंकि यह एकादशी उपवास की उत्पत्ति के साथ जुड़ी हुई हैं| सभी एकादशी उपवास, देवी एकादशी को समर्पित किए जाते हैं| देवी एकादशी भगवान विष्णु की शक्तियों में से एक हैं| इस शक्ति का जन्म तब हुआ था जब भगवान विष्णु की हत्या करने के लिए दानव मूर ने उनपर हमला किया| इसलिए देवी एकादशी भगवान विष्णु की रक्षा करने वाली शक्तियों में से एक हैं|

एक बार एक मुरा (मुरासुर) नाम का राक्षस रहता था, जिसने पृथ्वी और देवलोक पर हलचल मचा रखी थी और प्रत्येक जान को परेशान कर रखा था| दानव के इस अत्याचार को सहन करने में असमर्थ देवों ने भगवान शिव से मदद लेने का सोचा| भगवान शिव ने सभी देवों को सलाह दी की वह सब उनके बदले भगवान विष्णु से प्रार्थना करें|
भगवान विष्णु ने सभी के अनुरोध का ध्यान रखा और 10,000 साल तक दानव की सेना से युद्ध लड़ा| ऐसी मान्यता हैं की भगवान विष्णु, मुरासुर के अलावा उसकी सेना के हर राक्षस को मार चुके थे| जब और समय बाद तक वह मुरा को नही हरा पायें तभी भगवान विष्णु आराम करने के लिए हेमवती गुफाओं में गए। यह देख राक्षस ने मौके का फ़ायदा उठाने का सोचा और भगवान विष्णु को निंद्रावस्था में ही मारने का सोचा|
परंतु जैसे ही मुरा ने प्रभु को मारने के लिए अपने अस्त्र उठायें; तभी एक युवा लड़की भगवान विष्णु के शरीर से प्रकट हुई और उसने राक्षस को मार डाला। जब प्रभु अपनी नींद से जाग गए, उन्हें यह एहसास हुआ कि युवती ने राक्षस का वध कर दिया हैं| फिर भगवान विष्णु ने लड़की को वरदान माँगने के लिए कहा। युवती ने भगवान विष्णु को अपने भक्तों को आशीर्वाद देने में सक्षम होने के लिए शक्ति माँगी, जिन्होंने धर्म, धान्य और मोक्ष के साथ प्रभु के सम्मान में उपवास का पालन किया।
उसकी इच्छा को प्रभु ने पूर्ण किया और अब उस दिन को एकादशी के रूप में मनाया जाना जाता हैं क्योंकि वह एकादशी तिथि पर पैदा हुई थी। ऐसा माना जाता हैं कि जो कोई एकादशी तिथि पर उपवास करता हैं, वह मोक्ष से आशीषित होता हैं|


माना जाता हैं कि यदि एकदशी को अत्यंत समर्पण के साथ पूजा जाए, तो मनुष्य अपने हर पाप से मुक्त हो जाता हैं, और मृत्यु के बाद वह भगवान विष्णु के निवास में ले जाया जाता हैं| यह भी माना जाता हैं कि इस दिन उपवास करना यानी त्रिदेव - भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, और भगवान शिव के सम्मान में उपवासों के बराबर हैं|


Sunday, October 29, 2017

श्री नर्मदा जी की आरती || Shri Narmada Ji Ki Aarti

जय जगदानन्‍दी, मैया जय जगदानन्‍दी।
जय जगदानन्दी, मैया जय जगदानन्‍दी।
ब्रह्मा हरिहर शंकर, रेवा शिव हर‍ि शंकर
रुद्री पालन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।

नारद शारद तुम वरदायक, अभिनव पद चण्डी।
हो मैया अभिनव पद चण्डी।
सुर नर मुनि जन सेवत, सुर नर मुनि जन सेवत।
शारद पद वन्‍दी।
ॐ जय जगदानन्दी।।

धूम्रक वाहन राजत, वीणा वादन्‍ती।
हो मैया वीणा वादन्‍ती।
झुमकत-झनकत-झनननझुमकत-झनकत-झननन
रमती राजन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।

बाजत ताल मृदंगा, सुर मण्डल रमती। 
हो मैया सुर मण्डल रमती।
तुडितान- तुडितान- तुडितान, तुरडड तुरडड तुरडड
रमती सुरवन्ती।
ॐ जय जगदानन्दी।।

सकल भुवन पर आप विराजत, निशदिन आनन्दी।
हो मैया निशदिन आनन्दी।
गावत गंगा शंकर, सेवत रेवा शंकर
तुम भव भय हंती।
ॐ जय जगदानन्दी।। 

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
हो मैया अगर कपूर बाती।
अमरकंटक में राजत, घाट घाट में राजत
कोटि रतन ज्योति।
ॐ जय जगदानन्दी।। 

मैयाजी की आरती निशदिन जो गावे,
हो रेवा जुग-जुग जो गावे
भजत शिवानन्द स्वामी
जपत हर‍िहर स्वामी
मनवांछित पावे।

ॐ जय जगदानन्दी।।

Wednesday, October 18, 2017

Diwali Wishes Wallpaper and Quotes

Diwali Wishes Wallpaper and Quotes

Happy Diwali Qoutes
1 ) With gleam of Diya’s And the Echo of the Chants May Happiness and Contentment Fill Your life. Wishing you a very Happy and Prosperous Diwali

2) A warm Diwali wish for every happiness. May the warmth and splendor, that are a part of this auspicious occasion, fill your life with happiness and bright cheer, and bring to you joy and prosperity, for the whole year.


3) Light a lamp of love!
Blast a chain of sorrow!
Shoot a rocket of prosperity!
Fire a flowerpot of happiness!
Wish u and your family
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4) इस दिवाली जलाना हज़ारो दिये
खूब करना उजाला ख़ुशी के लिये
एक कोने में एक दिया जलाना जरूर
जो जले उम्र भर हमारी दोस्ती के लिये
Happy Diwali

5) सुख आये शांति आये आपके जीवन में,
समृधि आये खुशियां आये आपके जीवन में,
रहो आप हर परेशानी से दूर
और इस दीवाली लक्ष्मी आये आपके जीवन में..
!! शुभ दीवाली !!

6) May this festival of light dispel darkness, ignorance and evil from your life. Happy Diwali 

7) May your diwali be rangoli of lights brightening up your home with happiness and prosperity!

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8) रोशन हो दीपक और सारा जग जगमगाये
लिए साथ सीता मैय्या को राम जी हैं आये
हर शहर यु लगे मनो अयोध्या हो
आओ हर द्वार हर गली हर मोड़ पे हम दीप जलाये

9) I Pray to God to
Give U Shanti, Shakti, Sampati,
Swarup, Saiyam, Saadgi, Safalta,
Samridhi, Sanskar, Swaasth,
Sanmaan, Saraswati, aur SNEH

10) Khushiyan ho overflow,
Masti kabhi na ho low,
Dosti ka surur chaya rahe,
Dhan aur shorat ki ho bauchar,
Aisa aaye apke liye Diwali ka tyohar

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Monday, October 16, 2017

Lord Ayyappa Wallpaper

AYYAPPA, THE SON OF VISHNU & SHIVA
Lord Ayyappan or simply Ayyappa (also spelled as Ayappa) is a popular Hindu deity worshiped mainly in Kerala South India . Ayyaappa is believed to be born out of the union between Lord Shiva and the mythical enchantress Mohini, who is regarded as an avatar of Lord Vishnu. Therefore, Ayyappa is also known as 'Hariharan Puthiran' or 'Hariharputhra,' which literally means the son of both 'Hari' or Vishnu and 'Haran' or Shiva.


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Beautiful wallpaper  of Lord Ayyappa

Sabarimala in Kerala is the most famous Ayyappa shrine visited by over 50 million devotees it every year, making it one of the most popular pilgrimages in the world.
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Wallpaper of Lord Ayyappa, Lord Ganesh and Lord Murugan



Pilgrims from around the country brave the dense forests, steep hills and inclement weather to seek the blessings of Ayyappa on the 14h day of January, known as Makar Sankranti or Pongal, when the Lord himself is said to descend in the form of light. The devotees then accept 'prasada' or the Lord's food offerings and descend the 18 steps walking backwards with their faces turned towards the Lord.

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Saturday, October 7, 2017

श्री नर्मदा चालीसा || Shri Narmada Chalisa

॥ दोहा ॥
देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार।
चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार॥
इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान।
तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान ॥

॥ चौपाई ॥
जय-जय-जय नर्मदा भवानी,
तुम्हरी महिमा सब जग जानी।
अमरकण्ठ से निकली माता,
सर्व सिद्धि नव निधि की दाता।
कन्या रूप सकल गुण खानी,
जब प्रकटीं नर्मदा भवानी।
सप्तमी सूर्य मकर रविवारा,
अश्वनि माघ मास अवतारा।
वाहन मकर आपको साजैं,
कमल पुष्प पर आप विराजैं।
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं,
तब ही मनवांछित फल पावैं।
दर्शन करत पाप कटि जाते,
कोटि भक्त गण नित्य नहाते।
जो नर तुमको नित ही ध्यावै,
वह नर रुद्र लोक को जावैं।
मगरमच्‍छ तुम में सुख पावैं,
अंतिम समय परमपद पावैं।
मस्तक मुकुट सदा ही साजैं,
पांव पैंजनी नित ही राजैं।
कल-कल ध्वनि करती हो माता,
पाप ताप हरती हो माता।
पूरब से पश्चिम की ओरा,
बहतीं माता नाचत मोरा।
शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं,
सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं।
शिव गणेश भी तेरे गुण गावैं,
सकल देव गण तुमको ध्यावैं।
कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे,
ये सब कहलाते दु:ख हारे।
मनोकमना पूरण करती,
सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं।
कनखल में गंगा की महिमा,
कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा।
पर नर्मदा ग्राम जंगल में,
नित रहती माता मंगल में।
एक बार कर के स्नाना ,
तरत पिढ़ी है नर नारा।
मेकल कन्या तुम ही रेवा,
तुम्हरी भजन करें नित देवा।
जटा शंकरी नाम तुम्हारा,
तुमने कोटि जनों को तारा।
समोद्भवा नर्मदा तुम हो,
पाप मोचनी रेवा तुम हो।
तुम्हरी महिमा कहि नहिं जाई,
करत न बनती मातु बड़ाई।
जल प्रताप तुममें अति माता,
जो रमणीय तथा सुख दाता।
चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी,
महिमा अति अपार है तुम्हारी।
तुम में पड़ी अस्थि भी भारी,
छुवत पाषाण होत वर वारि।
यमुना मे जो मनुज नहाता,
सात दिनों में वह फल पाता।
सरस्वती तीन दीनों में देती,
गंगा तुरत बाद हीं देती।
पर रेवा का दर्शन करके
मानव फल पाता मन भर के।
तुम्हरी महिमा है अति भारी,
जिसको गाते हैं नर-नारी।
जो नर तुम में नित्य नहाता,
रुद्र लोक मे पूजा जाता।
जड़ी बूटियां तट पर राजें,
मोहक दृश्य सदा हीं साजें|
वायु सुगंधित चलती तीरा,
जो हरती नर तन की पीरा।
घाट-घाट की महिमा भारी,
कवि भी गा नहिं सकते सारी।
नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा,
और सहारा नहीं मम दूजा।
हो प्रसन्न ऊपर मम माता,
तुम ही मातु मोक्ष की दाता।
जो मानव यह नित है पढ़ता,
उसका मान सदा ही बढ़ता।
जो शत बार इसे है गाता,
वह विद्या धन दौलत पाता।
अगणित बार पढ़ै जो कोई,
पूरण मनोकामना होई।
सबके उर में बसत नर्मदा,
यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ।

॥ दोहा ॥
भक्ति भाव उर आनि के, जो करता है जाप।
माता जी की कृपा से, दूर होत संताप॥