Friday, June 30, 2017

हरितालिका तीज व्रत कथा Hartalika Teej Vrat Katha


हरितालिका तीज व्रत कथा  ( Hartalika Teej Vrat Katha ) : 


|| हरितालिका तीज पूजन सामग्री || 

केला,  केला  स्तम्भ , दूध , सुहाग , पिटारी, गंगाजल , दही , तरकी ,चूड़ी , चावल , घी , बिछिया , फूलहार , शक्कर , कंघा , मृत्तिका , शहद , शीशा , चन्दन , केशर , दीपक , फल, पान, धूप , कपूर , सुपारी , पकवान , यज्ञोपवीत , मिठाई इत्यादि | 

|| हरितालिका तीज व्रत कब और क्यों || 

हरितालिका तीज का व्रत भादों के शुक्लपक्ष में तृतीया को किया जाता है | तृतीया तिथि को किये जाने के कारन इसे तीजों नाम से जाना जाता है | कुंवारी कन्याएँ इच्छित वर पाने की आशा से और सुहागन सुहाग की रखा के लिए हरितालिका तीज व्रत करती हैं | 



|| हरितालिका तीज व्रत कथा  || 

जिनके दिव्य केशों पर मंदार के पुष्पों की माला शोभा देती है और जिन भगवन शंकर के मस्तक पर चंद्र और कंठ में मुंडो की माला पड़ी हुई है, जो माता पार्वती दिव्य वस्त्रो से तथा भगवान शंकर दिगंबर वेष धारण किए हैं , उन दोनों भवानी शंकर को नमस्कार करता हूँ | 

कैलाश पर्वत के सुन्दर शिखर पर माता पार्वती जी ने श्री महादेव जी से पूछा हे - महेश्वर ! मुझ से आप वह गुप्त से गुप्त वार्ता कहिये जो सबके लिए सब धर्मों  से भी सरल तथा महान फल देने वाली हो | हे नाथ ! यदि आप भलीभांति प्रस्सन है तो आप उसे मेरे सामने प्रकट कीजिये |  हे जगत नाथ ! आप आदि, मध्य और अंत रहित हैं| 
आपकी माया का कोई पार नहीं है | आपको मैंने किस भाँति प्राप्त किया है ? कौन से व्रत, तप या दान के पुण्य फल से आप मुझको वर रूप में मिले ?

श्री महादेव जी बोले - हे देवी ! यह सुन, मैं तेरे सम्मुख उस व्रत को कहता हूँ , जो परम गुप्त है, जैसे तारागणों में चन्द्रमा और ग्रहों  में सूर्य , देवताओं में गंगा, वेदों में साम और इंद्रियों में मन श्रेष्ठ है | वैसे ही पुराण और वेद सबमें इसका वर्णन आया है| जिसके प्रभाव से तुमको मेरा आधा आसान प्राप्त हुआ है | 

हे प्रिये ! उसी  का में वर्णन करता हूँ सुनो - भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की हस्त नक्षत्र संयुक्त तृतीया के दिन इस व्रत का अनुष्ठान मात्र से सब पापों का नाश हो जाता है | तुमने हिमालय पर्वत पर  इसी  प्रकार का व्रत किया था , जो मैं तुम्हें सुनाता हूँ | 

शंकर जी बोले आर्यावर्त में हिमालय नामक एक महान पर्वत है , जो गंगा की कल कल ध्वनि से शब्दायवान रहता है| हे पार्वती ! तुमने बाल्यकाल में उसी  स्थान पर परम तप किया था | तुमने ग्रीष्म काल में बाहर चट्टानों पर आसन लगा के तप किया | वर्षा काल में पानी में तप किया | शीत काल में पानी में खड़े होकर मेरे ध्यान में सलग्न रहीं , इस प्रकार छः कालों में तपस्या करके भी जब मेरे दर्शन न मिले तब तुमने ऊर्ध्वमुख होकर केवल वायुसेवन की , फिर वृक्षों के शुके पत्ते खाकर इस शरीर को कमजोर किया | 

तुम्हारे इस कष्ट को देखकर तुम्हारे पिता को बड़ी चिंता हुई और चिंतातुर होकर सोचने लगे कि मैं इस कन्या की किससे शादी करूँ |  इसी समय महर्षि नारद उपस्थित हुए | राजा ने हर्ष के साथ नारद जी का स्वागत किया और उपस्थित होने का कारण बताने को कहा | 

नारदजी ने कहा , राजन मैं भगवान् विष्णु का भेजा आया हूँ | मैं चाहता हूँ की आपकी सुन्दर कन्या को योग्य वर प्राप्त हो , बैकुंठ निवासी शेषशायी भगवान् ने आप की कन्या का वरण स्वीकार किया है |  राजा हिमांचल ने कहा , मेरा सौभाग्य है जो मेरी कन्या को विष्णु जी ने स्वीकार किया है और में अवश्य ही उन्हें अपनी कन्या का वरदान करूँगा |  यह सुनिश्चित हो जाने पर नारदजी बैकुंठ पहुंचकर श्री विष्णु भगवान् से पार्वती जी के विवाह का निश्चित होना सुनाया | इधर महाराज हिमांचल ने वन में पहुंचकर पार्वती जी से भगवान् विष्णु से विविआह निश्चित होने का समाचार दिया , ऐसा सुनते ही पार्वतीजी को बहुत दुःख हुआ |  पार्वती जी दुखित होकर अपनी सखी के पास पहुंचकर विलाप करने लगी | विलाप देख कर सखी ने पार्वतीजी की इच्छा जानकार कहा, देवी मैं तुम्हे ऐसी गुफा में तपस्या को ले  चलूंगी जहाँ तुम्हे महाराजा हिमांचल भी न ढूंढ सकेंगे , ऐसा कह उमा सहेली सहित  हिमालय की गहन गुफा में विलीन हो गई |

 तब पिता हिमवान ने तुमको घर पर न पाकर सोचा की मेरी पुत्री को कोई दानव या किन्नर हरण करके ले गया है | मैंने नारदजी को वचन दिया था की मैं पुत्री का विवाह विष्णु जी के साथ करूँगा | हाय अब ये कैसे पूरा होगा ? ऐसा सोचकर चिंतावश मूर्छित हो गए | मूर्छा दूर होने के पश्चात् गिरिराज साथियों सहित घने जंगल में ढूढ़ने निकले |  इसी दौरान गुफा में पार्वती जी अन्न  जल त्याग कर बालू का लिंग बनाकर मेरी आराधना करती रहीं | उस समय पर भद्रपद मॉस की हस्त नक्षत्र युक्त तृतीया के दिन तुमने मेरा विधि विधान से पूजन किया तथा रात्रि को गीत गायन करते हुए जागरण किया |  तुम्हारे उस महाव्रत के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा | मैं उसी स्थान पर आ गया , जहाँ तुम और तुम्हारी सखी दोनों थी | मैंने आकर तुमसे कहा मैं प्रसन्न हूँ | तब तुमने कहा की हे देव , यदि आप मुझसे प्रसन्न है तो आप महादेवजी ही मेरे पति हों | मैं तथास्तु कहकर कैलाश को आ गया |  तुमने प्रभात होते ही मेरी उस बालू की प्रतिमा को नदी में विसर्जित कर दिया |  हे शुभे , तुमने वहां अपनी सखी सहित व्रत का परायण किया | इतने में तुम्हारे पिता हिमवान भी नदी तट पर आ पहुंचे  और तुम्हे लगे लगा कर रोने लगे और बोले - बेटी तुम इस सिंह व्याघ्रदि युक्त जंगल में क्यों चली आई ? तुमने कहा हे पिता , मैंने पहले ही अपना शरीर शंकरजी को समर्पित कर दिया है किन्तु आपने इसके विपरीत कार्य किया इसलिए मैं वन को चली आई | 

ऐसा सुनकर हिमवान ने तुमसे कहा की मैं तुम्हारी इक्छा के विरुद्ध यह कार्य नहीं करूँगा और तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया |  हे प्रिये ! उसी व्रत के प्रभाव से तुमको मेरा अर्धासन प्राप्त हुआ है | 

हे देवी ! अब मैं तुम्हे बताता हूँ की इस व्रत का नाम हरितालिका क्यों पड़ा  |  
तुमको सखी हरण करके ले गयी थी , इसलिए हरतालिका नाम पड़ा | पार्वतीजी बोली हे स्वामी ! आपने इस व्रतराज का नाम जो की हरितालिका तीज है तोह बता दिया किन्तु मुझे इस व्रत हरितालिका की विधि और फल भी बताइये | 




|| हरितालिका तीज व्रत की विधि और फल || 

तब भगवान् शंकर जी बोले इस स्त्री जाती के अतिउत्तम व्रत हरितालिका की विधि सुनिए |  सौभाग्य की इक्छा रखने वाली स्त्रियां इस व्रत को विधिपूर्वक करें |  केले के स्तम्भों से मंडप बनाकर उसे वन्डरवारो से सुशोभित करें |  शंख , भेरी , मृदंग आदि बजावे | विधि पूर्वक मंगलचार करके श्री गौरी शंकर की बालू निर्मित प्रतिमा स्थापित करें |  फिर भगवान् शिव पार्वती की गंध , धुप , पुष्प आदि से पूजा करें | अनेको नैवेद्यों का भोग लगावें और रात्रि को जागरण करें | पूजन करने के पश्चात प्राथना करें - हे कल्याण स्वरुप शिव ! हे मंगलरूप शिव ! तुम्हे नमस्कार | हे सिंहवाहिनी मैं सांसारिक भय से व्याकुल हूँ मेरी रक्षा करो | हे माँ पार्वती आप मेरे ऊपर प्रसन्न होकर मुझे सुख और सौभाग्य प्रदान करो | इस प्रकार हरतालिका व्रत को करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं | 


|| इति श्री हरितालिका व्रत कथा || 
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Monday, June 26, 2017

Lord Vishnu Third Avatar : Varah Avatar Boar



To help mother earth Lord Vishnu incarnated Varaha Avatar in Sat- Yug. One day Lord Brahma’s four sons came to meet Lord Vishnu at his abode – Vaikunth. Since Lord Vishnu was resting at that time, the two guards named Jaya and Vijaya stopped them from entering the gates.Lord Brahma’s sons were very angry and they cursed Jaya and Vijaya to be born as humans on earth. Guards pleaded them but Lord Brahma’s son wouldn’t listen.

Lord Vishnu after hearing some noises arrived at the spot and apologized for his guards, saying they were just doing their duty.But the curse can’t be taken back saying this Lord Brahma’s sons left. Lord Vishnu then addressed his guards and said that curse would be lifted if you both in human forms would meet your death at my hands. The guards had no choice but to agree to this. Both the guards were born as brothers named Hiranya­kashyap and Hiranyaksha.

Hiranyaksha was a great devotee of Lord Brahma. He worshiped him for years and in return Lord Brahma gave him a boon. According to the boon no God, human, Asura, devta ,animal or beast would kill him. 


He started harassing devtas and invaded Indra’s palace. Fearing for their life devtas took shelter in the caves of mountain ranges of earth. To harass devtas, Hiranyakshap grabbed earth and submerged it in paatal lok. Mother Earth sank to the bottom of the ocean. At that time Manu and his wife Shatarupa ruled over earth.
Seeing this Manu & his wife came to Lord Brahma, bowed and said, “Father tell us how we may serve you & ensure our happiness in this world. Brahmaji replied “Hiranyakshap will not be destroyed by me because I have granted him a boon. Let’s take help of Lord Vishnu!”
Lord Vishnu took Varah Avtar and lifted the earth out from the ocean and began rising towards surface. 
Hiranyaksha rushed towards him with a mace in his hand saying, “You fraudulent fellow! Where are you carrying away the earth conquered by me? Stop or I’ll crush your head with this mace!”
Hiranyaksha challenged Lord Vishnu in the Varah (Boar) form to have battle with him but Vishnu ignored all his warnings and continued rising to the surface. Seeing this Hiranyaksha gave a chase, but the varah didn’t even looked back.
Hiranyaksha said, “Wait! You impostor! I know you can defeat all with your magic power but at present you are near me and I’ll surely defeat you.” The varah escaped to put mother earth at a safe place.
Hiranyaksha became very angry and shouted, “How can you run away like a coward? Return me my earth.” The earth was already frightened but seeing Hiranyaksha it began to tremble more.
Lord Vishnu in Varaha avatar brought earth over the surface of ocean and placed it gently on it’s axis and blessed her. He then turned to face Hiranyaksha. The demon threw his mace at the varah but the varah stepped aside and raised his mace. They fought for a long time with their mace.
Now Brahmaji warned Vishnu, “You’ve only an hour before the sunset. Destroy the demon before it’s dark so that he gets no opportunity to resort his black magic.” Hearing Brahma’s word’s Hiranyaksha hurled his mace towards Lord Vishnu but later flung it away. Having lost the mace, Hiranyaksha began hitting out with his fists on the chest of the varah.
Lord Vishnu in Varahaavatar hit Hiranyaksha hard on his face with his fist and tossed him in the air. He fell over his head and died on the spot. Manu got his earth back and the gods their heaven.
In this way Lord Vishnu in Varaha avatar slew Hiranyaksha and saved Mother Earth from harm.


Friday, June 23, 2017

भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कुर्मा अवतार | Lord Vishnu Second incarnation



Lord Vishnu Second incarnation as tortoise : भगवान विष्णु का दूसरा अवतार कुर्मा अवतार   



कुर्मा एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब है कछुआ | भगवान श्री हरी  विष्णु ने दूसरा अवतार कछुआ के रूप में देवताओं को राक्षसों से बचाने के लिए लिया था |

दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारन देवतागण अपना औज और अमरता खो देते है और शक्तिहीन हो जाते है |
राक्षसों से स्वर्ग हरने के पश्चात् देवता , श्री हरी व्हिष्णुजी के शरण में सहायता के लिए गए  |
तब श्री हरी भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन का उपाय बताया |

समुद्र मंथन के लिए मदरांचल पर्वत को मथानी के रूप में और वासुकी नाग का रस्सी के रूप में काम लिया गया |
चूकी देवतागण शक्तिहीन हो गए थे इसलिए उनसे अकेले समुन्द्र मंथन नहीं हो  पा रहा था |
अतः देवताओ ने राक्षसों से समझौता कर समुद्र मंथन कार्य में सहायता ली |
समुद्र मंथन में भगवान विष्णु ने राक्षसों को वासुकि नाग के मुख की ओर तथा देवताओ को पूछ की ओर रखा |
मंथन शुरू होते ही आधार न होने के कारन मदरांचल पर्वत समुद्र में धसने लगा जिसे देख श्री हरी विष्णु ने कुर्मा का रूप धारण कर , मदरांचल पर्वत का आधार बने |

बोलो  विष्णु भगवन की जय |  कुर्मा अवतार की जय | 



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कुर्मा अवतार विष्णुजी के दस अवतारों में दूसरा अवतार 
जानिए भगवान विष्णु के तृतीय अवतार के बारे में 
जानिए भगवान विष्णु के प्रथम अवतार मत्स्य अवतार के बारे में 





Wednesday, June 21, 2017

Matsya Avatar of Shri Hari Vishnu



First Avatar of Lord Vishnu

Matsya ( Fish ) is the first Avatar of Lord Vishnu . The Matsya Avatar rescued King Satyavrath from a Pralaya, dissolution, when the whole world faced deluge.

King Satyavrath and the Fish
 One day while bathing, King Satyavrath came across a tiny fish in his hands. The fish requested him to protect it. The King agreed to give shelter to the fish and kept it in a water kamandal (jug).

Fish grows in size
The King had not realised that the fish was none other that the Divinity Vishnu. The Divine Fish now wanted to reveal its Divinity to the the King. Immediately, the fish grew in size so that it had to be removed from the jug and placed in a larger body of water. The King then placed the fish in a well. Again the fish grew to occupy the whole well. The King now placed it in a lake, but the lake soon proved to be small. The King transferred the fish to the Sea as a last resort. The Divine Fish expanded to occupy the whole Sea.

Matsya Avatar
matsya_vishnu_avatar

King Satyavarath now understood that this was not an ordinary fish, but a manifestation of Divinity.
The Lord Vishnu revealed Himself to the King. He told him that there would be a deluge in the coming week and that, he would protect the King and rishi from pralaya in the form of a fish.
The Lord requested the King to collect samples of herbs, seeds and other living creatures to be placed in a boat. The boat is to be attached to the fish’s horns. The Lord said, that He in the form of a fish would lead them during the deluge. Saying this, Lord Vishnu disappeared.

Lord Appears as Matsya Avatar
The King made ready a boat and carried out all the instructions of the Lord. As promised, there was a deluge in the coming week. The King got into the boat along with the rishis and other creatures. Lord Vishnu appeared in his Matsya Avatar and sailed the boat during the floods.



First_Avatar_Lord_Vishnu_matsya_avatar

Jai Shri Hari Vishnu

Tuesday, June 20, 2017

God Vishnu 10 Avatars

God Vishnu's ten main avatars in a definitive order, from simple life-forms to more complex, and saw the Dashavatara as a reflection, or a foreshadowing, of the modern theory of evolution.




1) Matsya - fish, the first class of vertebrates; evolved in water(Indicates origin of Fishes in Silurian Period) read in more detail
2) Kurma - amphibious (living in both water and land; but not to confuse with the vertebrate class amphibians)(Indicates origin of Amphibians in Devonian Period). read in more detail.
3) Varaha - mammals, wild land animals (Indicates Mammals origin in Triassic Period) read in more detail
4) Narasimha - beings that are half-animal and half-human (indicative of emergence of human thoughts and intelligence in powerful wild nature)
5) Vamana - short, premature human beings
6) Parasurama - Early humans living in forests and using weapons
7) Rama - Humans living in community, beginning of civil society
8) Krishna - Humans practising animal husbandry, politically advanced societies
9) Buddha - Humans finding enlightenment
10)Kalki - Advanced humans with great powers.


god_vishnu_ten_avatar


God Vishnu 10 Avatars