Monday, July 3, 2017

Ganesh Chaturthi Vrat Katha and Puja Vidhi गणेश चतुर्थी व्रत कथा और पूजन विधि

Ganesh Chaturthi Vrat Katha and Puja Vidhi : गणेश चतुर्थी व्रत कथा और पूजन विधि 

गणेश चतुर्थी की पूजन विधि :  भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को प्रातः काल उठकर शौच तथा स्नान आदि से निवृत्त होकर , नित्यकर्म आदि करके , सूर्य को अर्ध्य अर्पण करें | फिर संकल्प करें और गणेश जी का ध्यान करें | इसके पश्चात आवाहन करके आसान , पाद्य , अर्ध्य आचमन समर्पण करके पंचामृत ( घी , दूध , दही , शहद और शर्करा ) से गणेश जी का स्नान करावें | फिर शुद्ध जल से स्नान करने के बाद वस्त्र, यज्ञोपवीत , चन्दन , गंध , अक्षत , पुष्पमाला , धुप , दीप , मोदक , ऋतुफल आदि समर्पण करके आरती करें | फिर दूर्वा के अंकुर चढ़ाकर परिक्रमा करें , पुष्पांजलि अर्पण करें , गणेशजी की प्रार्थना करें , इसके पश्चयात कथा सुने |
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गणेश चतुर्थी की कथा 

गणेश चतुर्थी की कथा : श्री गणेश जी अपनी माता पार्वती जी से कहते हैं कि हे माता ! भाद्रपद मास की चतुर्थी अनेक फलो और सिद्धि की देने वाली है | 
सतयुग में नल नाम का अति पवित्र चित्त वाला एक राजा था | उसकी दमयंती नाम वाली प्रसिद्द और सुन्दर रानी थी | भाग्यवश एक समय उसको स्त्री वियोग और विषाद करने वाला श्राप मिल गया | अतः उस समय उस रानी ने राजा को और अपने आप को विपदाग्रस्त देखकर इस उत्तम व्रत गणेश चतुर्थी का किया था | यह वार्ता सुनकर श्री पार्वती जी ने पूछा कि हे पुत्र ! दमयंती ने किस विधि से इस  चतुर्थी व्रत को किया था एयर कितने समय के पश्च्यात उसको इस चतुर्थी व्रत का फल प्राप्त हुआ | 
पार्वती जी के इस प्रकार पुछने पर गणेश जी ने जो कुछ कहा उसको विस्तार पूर्वक सुनो | श्रीगणेश जी ने कहा हे माता ! जब राजा नल पर विपत्ति आई तब गजशाला इत्यादि चोरी हो गए और चोरो ने राजा  का सब खजाना भी लूट लिया | राजा का महल आग में भस्म हो गया , राजकार्य को करने वाले मंत्री भी राजा को छोड़कर अन्यत्र चले गए | इस प्रकार राजा की विपत्ति बढ़ती ही गयीं | राजा जुए में राज - पाट  सब हार गया | तब राजा दमयंती को लेकर वन में चला गया | परन्तु दुर्भाग्य ने वहां भी उसका पीछा नहीं छोड़ा और दुर्देव के कारण दमयंती से भी विछोह हो गया | तब राजा नल ने किसी नगर में जाकर नौकरी कर ली तथा रानी और राजपुत्र भी अन्य ग्रामो में चले गए | वे अनेक प्रकार की व्याधियों से पीड़ित होकर , अपने - अपने कर्म का फल भोगते हुए पृथक पृथक रहकर भिक्षा मांगकर दिन बिताने लगे | एक समय दमयंती ने महामुनि शरभंग के दर्शन किये | तब रानी मुनि के चरणों पर मस्तक नवकार कहने लगी की हे भगवान ! मेरे पति पुत्र और विपुल राज्य तथा हाथी  घोड़े आदि सरे ऐश्वर्य पहले की तरह प्राप्त हो सकते हैं की नहीं ? गणेश जी बोले कि हे माता ! इस प्रकार दमयंती के वचन सुनकर , शरभंग ऋषि बोले कि हे दमयंती ! बड़े से बड़े संकट को दूर करने वाला और समस्त मनोकामनाओं के पूर्ण करने वाला एक व्रत तुमसे कहता हूँ , सो तुम ध्यानपूर्वक सुनो | भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकट नाशक कहलाती है | उस दिन स्त्रियों को भक्ति और प्रेमपूर्वक पहले कहे हुए प्रकार से श्री एकदन्त गजानन की पूजा करनी चाहिए | इस व्रत को करने से हे देवी ! तुम्हारी सब मनोकामनाएं सफल हो जाएँगी और सात माह में तुम राजा नल को अवश्य पाओगी | गणेशजी कहने लगे कि हे माता ! तब से दमयंती भाद्रपद मास कृषणपक्ष की संकट नाशक चतुर्थी से इस व्रत को आरम्भ करके श्री गणेश जी के पूजन में तत्पर रही | तब सात महीने में उसके पति राज्य और पुत्र उसको प्राप्त हो गए | फिर राजा भी इस उत्तम व्रत को करके पहले की तरह समस्त ऐश्वर्य को प्राप्त हो गया | 



|| इति श्री स्कन्द पुराणान्तर्गत संकट नाशक गणेश चतुर्थी व्रत  कथा समाप्त || 



श्री गणेश जी की आरती 
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